एक बै दो तेज से बूढ़े हरयाणा रोडवेज की बस में बैठ लिये ।
कंडक्टर आया एक धोरै, अर बोल्या – “हां ताऊ, टिकट?”
बूढ़ा पईसे बचावण के चक्कर में था,
बोल्या – “ओ मेरे यार कंडक्टर,
न्यूँ सोच लिये अक गाम की छोरी बैठ-गी थी” ।
कंडक्टर भी शरीफ था, मान-ग्या बेचारा ।
फिर कंडक्टर नै दूसरा ताऊ टोक लिया – “ताऊ, टिकट” ।
दूसरा ताऊ पहले वाले का भी उस्ताद लिकड़ा,
बोल्या – “ओ मेरे यार कंडक्टर, छोडै ना,
न्यूँ सोच लिये अक छोरी गैल बटेऊ भी था” !!

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